Sampatiya Uikey: संपतिया उइके की प्रेरणादायक कहानी, मंडला की बेटी से मंत्री बनने का सफर

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मध्य प्रदेश के मंडला जिले की एक आदिवासी महिला संपतिया उइके जिसने पंचायत से लेकर संसद तक और अब मंत्री पद तक का सफर तय किया। उनका जीवन संघर्ष और सेवा का उदाहरण है, जिसने हज़ारों लोगों को नई दिशा दिखाई।
आज संपतिया उइके जी सिर्फ एक नेता नहीं, बल्कि मंडला के हर उस युवा के लिए प्रेरणा हैं जो गांव से निकलकर बड़ा सपना देखता है।

संपतिया उइके जी की कहानी जानना जरूरी है क्योंकि इसमें वह जज़्बा है जो हर आम इंसान को खास बना सकता है। आज के इस आर्टिकल में हम संपतिया उइके जी के बचपन से लेकर उनके मंत्री बनने तक की पूरी कहानी जानेंगे। 

संपतिया उइके का जन्म और शुरूआती शिक्षा

संपतिया उइके का जन्म 4 सितंबर 1967 को मध्य प्रदेश के मंडला जिले के एक छोटे से गांव शुर्खी में हुआ। वो गोंड आदिवासी समाज से आती हैं और एक सामान्य परिवार में पली-बढ़ीं। उनकी पढ़ाई-लिखाई भी बहुत सीमित संसाधनों में हुई, लेकिन उन्होंने 1990 में 12वीं पास की और फिर सालों बाद 2022 में एम.ए. (हिंदी) भी पूरा किया। उन्होंने एक गृहिणी, एक माँ और बाद में एक जिम्मेदार जनप्रतिनिधि के रूप में हर भूमिका को ईमानदारी से निभाया।

संपतिया उइके की राजनीतिक शुरुआत 

संपतिया उइके की राजनीतिक शुरुआत 1999 में हुई जब वे सबसे पहले अपने गांव की सरपंच बनीं। एक महिला सरपंच के तौर पर उन्होंने गांव में मूलभूत सुविधाएं, जैसे पीने का पानी, सड़क और स्कूल जैसे मुद्दों पर काम किया। और इसी कारण लोगों के बीच उनकी पहचान एक ज़मीनी और काम करने वाली महिला नेता के रूप में बनने लगी। बाद में वे मंडला जिला पंचायत की अध्यक्ष बनीं और वहां भी 3 बार लगातार चुनी गईं।

2017 में राज्यसभा उम्मीदवार

2017 में जब पर्यावरण मंत्री अनिल माधव दवे का निधन हुआ, तो मध्य प्रदेश से खाली हुई राज्यसभा सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने संपतिया उइके को उम्मीदवार बनाया। उनका राज्यसभा कार्यकाल 1 अगस्त 2017 से 29 जून 2022 तक चला। इस दौरान उन्होंने सदन में आदिवासी समाज, महिला सशक्तिकरण और ग्रामीण विकास से जुड़े कई मुद्दे मजबूती से उठाए। राज्यसभा में उनकी उपस्थिति 86% रही, जो दिखाता है कि उन्होंने अपनी जिम्मेदारी को कितनी गंभीरता से निभाया है।

2023 में विधानसभा चुनाव जीतकर बनीं मंत्री

2023 में संपतिया उइके ने मंडला विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और शानदार जीत दर्ज की। इस जीत के बाद उन्हें मध्यप्रदेश सरकार में मंत्री पद की शपथ दिलाई गई। उन्हें लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग (Public Health Engineering) का जिम्मा मिला, जो ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल और स्वच्छता से जुड़ी योजनाओं को लागू करता है।

मंत्री बनने के बाद भी उन्होंने ज़मीन से जुड़ाव नहीं छोड़ा और जनता के बीच रहकर काम कर रही हैं। अक्सर उन्हें मंडला जिले के रपटा घाट जिसे अब महिष्मति घाट के नाम से जाना जाता है, यहाँ उन्हें जनता के बीच देखा जा सकता है। संपतिया उइके जी हर एक मौके पर जनता के साथ वार्तालाप करती है। 

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संपतिया उइके की पहचान एक ईमानदार, मेहनती और सरल- साधारण नेता की है। वो भाषणों से ज़्यादा काम पर विश्वास करती हैं। उनका रहन-सहन आज भी साधारण है और वो अकसर बिना तामझाम के गांव-गांव जाकर लोगों की समस्याएं सुनती हैं। उनके कार्य करने के तरीके से स्पष्ट है कि वे सत्ता को सेवा का माध्यम मानती हैं और इस दिशा में वे लगातार आगे बढ़ रही है। 

संपतिया उइके की कहानी एक प्रेरणा

संपतिया उइके जैसे नेता आज भी जनता की उम्मीदों को ज़िंदा रखते हैं। उनका जीवन दिखाता है कि अगर नीयत साफ हो और इरादा मजबूत, तो कोई भी महिला, कोई भी गांव का इंसान, देश के सर्वोच्च मंच/स्थान तक पहुंच सकता है। वो सिर्फ मंडला की नहीं, पूरे भारत की उन महिलाओं की आवाज़ हैं जो संघर्ष के बीच भी समाज को बदलने का सपना देखती हैं।
उनकी कहानी भविष्य की कई पीढ़ियों को साहस और उम्मीद दे सकती है।

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