MP News: मंडला जिले की बैगनी जामुन अब सिर्फ स्वाद नहीं, बल्कि रोज़गार और सम्मान की पहचान बन चुकी है। मंडला जिले के गांव की महिलाएं हर दिन सैकड़ों रुपए कमा रही हैं और जामुन की यह मीठी मेहनत अब मध्य प्रदेश की सीमाएं लांघकर देशभर की मंडियों में चमक बिखेर रही है। यह कहानी है आत्मनिर्भरता, सेहत और स्वाद के मेल की। क्या है पूरा मामला और कैसे मंडला की जामुन आज पूरे देश में चर्चा के विषय है इस बारे में हम विस्तार से जानेंगे।
मंडला से निकली मिठास, अब देशभर के बाजारों में छा गई
मध्य प्रदेश के मंडला जिले में जंगलों और खेतों के बीच पले-बढ़े जामुन के पेड़ अब आर्थिक बदलाव की जड़ बन गए हैं। यहां की जामुन जबलपुर, बालाघाट, सिवनी से लेकर नागपुर की मंडियों तक बिक रही है। सड़क किनारे ठेलों से लेकर हाट बाजारों तक जामुन की मौजूदगी हर जगह दिखती है। यह नज़ारा सिर्फ व्यापार नहीं, ग्रामीण बदलाव का प्रतीक बन चुका है।
मंडला जबलपुर रोड में जामुन के बहुत सरे पेड़ है और यहाँ के रास्ते में सफर करने पर कई यात्री रुक कर जामुन तोड़ते दिखाई देते है और इसके साथ ही इस रस्ते के हाईवे में बच्चे और कई महिलाएं पूरे रास्ते में जामुन बेचती नजर आती है। यहाँ जामुन को अच्छी तरह से पैकेट में पैक करके बेचा जा रहा है जो की इस रास्ते के यात्रियों को खरीदने में भी मजबूर कर देता है।
महिलाओं के हाथों में कमान, आत्मनिर्भरता की नई कहानी
इस पूरे बदलाव की कमान संभाली है गांव की महिलाओं ने। वे सुबह जंगलों या खेतों से जामुन तोड़ती हैं, दोपहर तक उन्हें बाजार में बेचती हैं और हर दिन करीब ₹500 की कमाई कर रही हैं। यानी महीने के ₹15,000 – वो भी बिना किसी बड़ी पूंजी या सुविधा के। यह न सिर्फ आमदनी है, बल्कि आत्मसम्मान और आर्थिक सशक्तिकरण की मजबूत मिसाल भी।
स्वाद ही नहीं, सेहत का खजाना भी है जामुन
‘इंडियन ब्लैकबेरी’ यानि जामुन स्वाद में जितनी शानदार है, उतनी ही औषधीय गुणों से भरपूर भी। आयुर्वेद में इसका इस्तेमाल मधुमेह, खून की कमी, पाचन तंत्र को ठीक करने और कैंसर जैसी बीमारियों तक में होता आया है। इसकी छाल, बीज और पत्तियां भी औषधीय कंपनियों के लिए कीमती सामग्री हैं। यही कारण है कि अब जामुन सिर्फ फल नहीं, एक हेल्थ प्रॉडक्ट के रूप में उभर रही है।
20 से ज्यादा किस्में – बाजार की नई डिमांड
मंडला के वन क्षेत्रों में पाई जाने वाली जामुन की 20 से ज्यादा किस्में अलग-अलग स्वाद, आकार और रंग में उपलब्ध हैं। स्थानीय किसानों और वनवासी समुदायों ने पीढ़ियों से इन्हें सहेज रखा है। अब जब बाजार में इन किस्मों की डिमांड बढ़ रही है, तो यह धरोहर कमाई का साधन भी बन रही है।
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देखें जनता क्या कहती है?
स्थानीय लोगों का कहना है कि कभी ये फल बच्चों की जेब में मिट्टी में सना हुआ होता था, आज वही जामुन ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी बिक रहा है। एक महिला विक्रेता ने कहा, “पहले हमें लगता था कि जंगल का फल कोई नहीं खरीदेगा, अब लोग खुद आकर पूछते हैं – जामुन है क्या?”
वहीं दूसरी ओर, शहरों के लोग इसे हेल्दी डाइट का हिस्सा बना रहे हैं। सोशल मीडिया पर भी लोग जामुन को “सीजनल सुपरफूड” की तरह प्रमोट कर रहे हैं।
जामुन की यह कहानी बताती है कि प्रकृति से जुड़ा हर फल, हर पेड़ अगर सही दिशा और सोच मिले तो वो आजीविका और आत्मनिर्भरता का मजबूत साधन बन सकता है। मंडला की महिलाएं हमें यही सिखा रही हैं – मेहनत की मिठास, जामुन से भी ज्यादा गहरी होती है। आपने इस सीजन में जामुन खाया या नहीं? क्या आप भी मानते हैं कि ऐसे देसी फलों को बढ़ावा मिलना चाहिए? अपनी राय नीचे कमेंट करें।
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