MP News: इंदौर ने रचा नया इतिहास, राजधानी भोपाल को पीछे छोड़ बना एक्शन की असली राजधानी

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MP News:  इंदौर और भोपाल—दो बड़े नाम, एक ही राज्य, लेकिन अब दो बिल्कुल अलग पहचान। जहां एक ओर भोपाल ‘राजनीतिक राजधानी’ है, वहीं इंदौर ने खुद को ‘एक्शन कैपिटल’ साबित कर दिया है। मेट्रो से लेकर मेट्रोपॉलिटन रीजन और टाउन प्लानिंग तक, हर स्तर पर इंदौर ने यह दिखाया है कि काम सिर्फ कागजों में नहीं, ज़मीन पर होना चाहिए। सवाल ये है—क्या अब वक्त आ गया है कि राजधानी की परिभाषा सिर्फ सत्ता से नहीं, एक्शन से तय की जाए?

इंदौर की मेट्रो दौड़ी, राजधानी अब भी इंतज़ार में है

साल 2018 में इंदौर और भोपाल दोनों के लिए मेट्रो प्रोजेक्ट की आधारशिला रखी गई थी। शुरुआत एकसाथ हुई, बजट एक जैसा था और योजनाएं भी मिलती-जुलती थीं। लेकिन 2025 तक आते-आते तस्वीर बदल गई। इंदौर में न सिर्फ ट्रैक बिछा, स्टेशन बने और ट्रेनें आईं, बल्कि प्रधानमंत्री ने खुद इसका उद्घाटन भी कर दिया। दूसरी तरफ भोपाल अब भी अधूरी सुरंगों और अधूरे स्टेशनों के बीच तकनीकी खामियों से जूझ रहा है। सुरक्षा निरीक्षण अब तक एक बार भी नहीं हुआ। जिस राजधानी से उम्मीद थी कि वह उदाहरण बनेगी, वह खुद एक प्रयोगशाला बनकर रह गई है।

जहां इंदौर ने दौड़ लगाई, भोपाल सिर्फ नक्शा बना रहा है

मध्य प्रदेश सरकार ने दिल्ली-एनसीआर की तर्ज पर भोपाल और इंदौर को मेट्रोपॉलिटन रीजन के रूप में विकसित करने का फैसला किया। इंदौर ने इस फैसले को गंभीरता से लेते हुए धार, देवास, उज्जैन और शाजापुर को मिलाकर विस्तृत डीपीआर तैयार कर ली। वहीं भोपाल अभी भी यह तय नहीं कर पाया है कि सर्वे शुरू कैसे किया जाए। सिर्फ एक कांसेप्ट मैप बनाकर रखा गया है, लेकिन जमीन पर कोई हलचल नहीं। ये बताता है कि इंदौर में सोच से पहले एक्शन होता है, जबकि भोपाल में एक्शन से पहले फाइलें घुमाई जाती हैं।

इंदौर ने भविष्य की नींव रखी, भोपाल पीछे छूट गया

शहरी विकास की बात हो और इंदौर का ज़िक्र न हो, ये संभव नहीं। शहर में सात टाउन प्लानिंग स्कीम एकसाथ चल रही हैं, जिसमें किसानों से जमीन लेकर सड़कों, पार्किंग, हरियाली और सुविधाओं से सुसज्जित इलाकों का निर्माण किया जा रहा है। इससे न सिर्फ शहर का विस्तार व्यवस्थित हो रहा है, बल्कि किसानों को भी बेहतर मुआवजा मिल रहा है। इसके विपरीत भोपाल में सिर्फ कटारा हिल्स क्षेत्र में एक टीपीएस योजना चल रही है, वो भी धीमी रफ्तार से। इससे साफ है कि इंदौर सिर्फ आज नहीं, आने वाले कल की भी तैयारी में जुटा है।

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देखें जनता क्या कहती है

लोगों की नजर में अब राजधानी शब्द का मतलब सिर्फ सरकारी कार्यालयों और मंत्रियों का शहर नहीं रह गया है। अब लोग उस शहर को असली राजधानी मानते हैं, जो तेजी से फैसले ले और उन्हें ज़मीन पर उतारे। सोशल मीडिया से लेकर आम चर्चा तक, लोग कह रहे हैं कि इंदौर को सिर्फ ‘स्वच्छता का चैम्पियन’ नहीं, बल्कि ‘विकास का अगुआ’ कहा जाना चाहिए। अगर राजधानी की कुर्सी सिर्फ शोपीस बनकर रह जाए, तो जनता खुद तय करती है कि असली नेतृत्व किसके पास है।

इंदौर ने यह साबित कर दिया है कि अगर सोच स्पष्ट हो, फैसले मजबूत हों और क्रियान्वयन तगड़ा हो, तो कोई भी शहर ‘राजधानी’ से ज्यादा अहम हो सकता है। राजधानी होना अब सिर्फ एक प्रशासनिक टैग नहीं, एक जिम्मेदारी है—जो काम करने से निभाई जाती है। भोपाल के लिए ये एक आईना है और इंदौर के लिए एक नई पहचान।

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