MP News: मध्य प्रदेश में सरकारी कर्मचारियों की हड़ताल को लेकर हलचल तेज हो गई है। प्रदेश के 4.5 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारी और संविदा कर्मी अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने की तैयारी कर रहे हैं। यदि मध्य प्रदेश सरकार ने उनकी मांगे पूरी नहीं की, तो 10 मार्च से शुरू हो रहे विधानसभा सत्र के बाद प्रदेशभर में सरकारी कामकाज ठप हो सकता है।
कर्मचारी संगठनों ने अपनी 9 प्रमुख मांगों को लेकर नेता प्रतिपक्ष उमंग सिंघार को ज्ञापन सौंपा है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि यह मुद्दे विधानसभा सत्र में उठाए जाएं। अगर सरकार ने उनकी मांगे नहीं मानीं, तो सभी सरकारी विभागों में कार्यरत कर्मचारी बेमियादी हड़ताल पर चले जाएंगे।
कर्मचारियों की प्रमुख मांगें
- अधिकारी/कर्मचारियों की बंद पदोन्नति प्रक्रिया फिर से शुरू की जाए।
- गृह भाड़ा भत्ता (HRA) सातवें वेतनमान के हिसाब से पुनरीक्षित किया जाए।
- प्रदेश के सभी कर्मचारियों, अधिकारियों और पेंशनरों को केंद्र सरकार के समान महंगाई भत्ता दिया जाए।
- पेंशनरों के लिए धारा 49(6) का बंधन समाप्त किया जाए।
- 35 साल की सेवा पूरी करने पर अन्य विभागों की तरह शिक्षकों को भी चौथी क्रमोन्नति वेतनमान दिया जाए।
- नवीन शिक्षक संवर्ग को नियुक्ति तिथि से वरिष्ठता प्रदान की जाए।
- संविदा और आउटसोर्स कर्मचारियों को नियमित किया जाए और आउटसोर्स प्रथा समाप्त की जाए।
- शिक्षा विभाग में अनुकंपा नियुक्ति के लिए B.Ed पात्रता परीक्षा की अनिवार्यता समाप्त की जाए।
- 1 अगस्त से 31 दिसंबर के बीच रिटायर होने वाले कर्मचारियों को एक अतिरिक्त वेतन वृद्धि का लाभ दिया जाए।
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कर्मचारियों की हड़ताल से होगा बुरा असर
अगर सरकारी कर्मचारी और संविदा कर्मी हड़ताल पर जाते हैं, तो मध्य प्रदेश में प्रशासनिक कामकाज रुक सकता है। स्कूल-कॉलेजों की व्यवस्थाएं बिगड़ सकती हैं, सरकारी दफ्तरों में फाइलों का अटकना तय है, और आम जनता को विभिन्न सेवाओं में देरी का सामना करना पड़ सकता है।
संयुक्त कर्मचारी संगठन के पदाधिकारी सुनील पटेरिया का कहना है कि लंबे समय से कर्मचारियों की 52 मांगें लंबित हैं, लेकिन हमने फिलहाल 9 प्रमुख मुद्दों को उठाया है। अगर सरकार ने इस पर तुरंत निर्णय नहीं लिया, तो विधानसभा सत्र के बाद प्रदेशभर में हड़ताल शुरू हो जाएगी।
अब सरकार के फैसले पर टिकी निगाहें
अब देखना होगा कि सरकार कर्मचारियों की इन मांगों पर क्या रुख अपनाती है। अगर विधानसभा सत्र में कर्मचारियों को राहत नहीं मिली, तो प्रदेश में बड़ा प्रशासनिक संकट खड़ा हो सकता है।
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मध्यप्रदेश में प्रथम नियुक्ति वरिष्ठता दिनांक2008 है जिसे मध्यप्रदेश सरकार ने इसे 2018 से प्रथम नियुक्ति दिनांक वरिष्ठता मान रही है जो कि न्यायहित में नहीं है प्रथम नियुक्ति वरिष्ठता दिनांक2008 ही मानी जाए तो न्याय हित में होगा।
Hame bhi 15 year ho gaye hain.par aaj talak promotion nahi ho raha hai Aur hamare Department ke filed Employee without Promotion ke hi Retirement pa rahe hai, jiske karan hum sabhi ko apna future Nirashajanak dikh raha hai