MP News: महिला शिक्षक ने नौकरी पाने के लिए लगाया फर्जी जाति प्रमाणपत्र, कोर्ट ने सुनाई 7 साल की जेल

By
On:
Follow Us

MP News: मध्य प्रदेश के खरगोन ज़िले से चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहाँ एक महिला ने शिक्षक की सरकारी नौकरी पाने के लिए फर्जी दस्तावेजों का सहारा लिया। इस महिला का नाम अंजू बाला है और इसने असली मार्कशीट और नकली जाति प्रमाणपत्र से नौकरी पा ली। 

हलाकि अब अदालत ने आरोपी महिला को 7 साल की सख्त सजा सुनाई है। ये मामला न केवल सिस्टम की खामियों को उजागर करता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या बच्चों के भविष्य को ऐसे फर्जीवाड़े के हवाले किया जा सकता है?

देखें कैसे सामने आया ये फर्जीवाड़ा

फ़र्ज़ी दस्तावेज से शिक्षक बनने का यह मामला सबसे पहले 2017 में उस समय उजागर हुआ, जब RTI कार्यकर्ता प्रेमलाल गुर्जर ने शिक्षा विभाग से कुछ दस्तावेज़ निकलवाए और उनकी जांच शुरू की। इन दस्तावेजों की तुलना जब असली अंजू बाला से की गई, तो पता चला कि उनकी 10वीं और 12वीं की मार्कशीट की छाया प्रति का गलत इस्तेमाल हुआ है।

रुकमणी उर्फ बेबी नाम की महिला ने इन्हीं मार्कशीट के साथ खुद का फर्जी जाति प्रमाणपत्र जोड़कर सरकारी स्कूल में शिक्षक की नौकरी हासिल कर ली थी।

आरोपी महिला का पति भी शामिल था इस साजिश में

इस फर्जीवाड़े में केवल रुकमणी/बेबी ही नहीं, बल्कि उसका पति विक्रम सिंह चौहान भी बराबरी का दोषी पाया गया। पुलिस जांच में यह स्पष्ट हुआ कि दोनों ने मिलकर पूरे फर्ज़ीवाड़े को अंजाम दिया। बड़वाह थाने में दर्ज केस के बाद मामले की सुनवाई बड़वाह की प्रथम अपर सत्र न्यायालय में चली, जहाँ अदालत ने कड़ी टिप्पणी करते हुए कहा कि “शिक्षा जैसे पवित्र क्षेत्र में भी ऐसे धोखेबाजों के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए।

अदालत ने सुनाई कड़ी सजा 

26 जून 2025 को सुनवाई पूरी होने के बाद अदालत ने रुकमणी को आईपीसी की चार धाराओं में दोषी पाया और धारा 420 और 468 के तहत  7-7 साल सश्रम कारावास, धारा 419 के तहत 3 साल की सजा, धारा 471 के तहत 2 साल की सजा साथ में ₹8000 का जुर्माना भी लगाया गया।

इस केस की पैरवी विशेष लोक अभियोजक चंपालाल मुजाल्दे ने की और अदालत ने उन्हें दोषियों को सजा दिलवाने में सफल माना।

देखें क्या कहता है कानून ऐसे मामलों पर?

सरकारी नौकरी के लिए फर्जी दस्तावेजों का प्रयोग करना भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत एक गंभीर अपराध है। IPC की धारा 419 (जालसाजी से पहचान बनाना), 420 (धोखाधड़ी), 468 (फर्जी दस्तावेज बनाना), और 471 (फर्जी दस्तावेज का प्रयोग) के तहत आरोपी को कठोर सजा का प्रावधान है।

कानून विशेषज्ञों के अनुसार, ऐसे मामलों में अदालतों का रुख अब काफी सख्त हो गया है क्योंकि यह केवल व्यक्तिगत धोखाधड़ी नहीं, बल्कि पूरे सरकारी तंत्र और आम जनता के साथ विश्वासघात होता है। और ऐसे मामले बाकि लोगों और समाज को गलत रास्ते में ले जाने का भी काम करता है इस लिए अदालत ऐसे मामलों पर शख्ती से कार्यवाही करती है। 

यह भी पढ़ें – Ladli Behna Yojana 2025: अब हर महीने 310 करोड़ ज़्यादा खर्च करेगी सरकार, दिवाली से मिलेंगे ₹1500

देखें जनता क्या कहती है

सोशल मीडिया और लोकल चर्चाओं में इस घटना को लेकर भारी नाराज़गी है। लोग पूछ रहे हैं कि जब एक शिक्षक, जो बच्चों के जीवन को आगे बढ़ाने का जिम्मा उठाता है, वह खुद फर्जीवाड़ा करता है तो क्या नैतिकता बची है?

बड़वाह के ही एक स्थानीय शिक्षक रामप्रसाद यादव ने कहा, “यह केवल एक महिला की सजा नहीं है, बल्कि उन हजारों लोगों को संदेश है जो गलत रास्ते से सरकारी नौकरी पाना चाहते हैं।”

मुझे लगता है की इस घटना ने साबित कर दिया है कि अब फर्जी दस्तावेज़ों से नौकरी पाना सिर्फ जोखिम नहीं, जेल की सीधी राह है। शिक्षा जैसे क्षेत्र में नैतिकता और ईमानदारी सबसे जरूरी है। अब आपका क्या कहना है? क्या ऐसे मामलों में और भी कड़े कानून होने चाहिए? नीचे कमेंट करें और अपनी राय बताएं। और ऐसी ख़बरों के लिए अपना कल के साथ जुड़े रहें। 

यह भी पढ़ें – मध्य प्रदेश में बड़ी कंपनियों ने किया तीस हजार करोड़ से ज़्यादा का निवेश, 35,000 से ज़्यादा युवाओं को मिलेगा रोजगार

Leave a Comment

Your Website