मध्य प्रदेश में पदोन्नति नियम 2025 को लेकर सियासी और प्रशासनिक हलचल तेज हो गई है। सामान्य, पिछड़ा और अल्पसंख्यक वर्ग के अधिकारी/कर्मचारी अब हाईकोर्ट में जाकर आपने मांगे पूरी करने की तैयारी कर रहे हैं। उनका बोलना है कि नए नियमों में फिर से उनके साथ अन्याय हुआ है और ये बस नई बोतल में पुरानी शराब जैसा है।
देखें क्यों विवाद बना पदोन्नति नियम 2025
9 साल बाद एमपी सरकार ने पदोन्नति के नए नियम लागू किए, लेकिन नए और अच्छे बदलावों की जगह कर्मचारियों को वही पुरानी नीतियां देखने को मिलीं। नियम 2025 में 2002 के प्रावधानों को ही बरकरार रखा गया है जिसमे आरक्षित वर्ग को 36% कोटा देने के बाद भी उन्हें अनारक्षित पदों पर भी वरिष्ठता के आधार पर लाभ मिलता रहेगा।
सपाक्स की खुली नाराज़गी और कानूनी कदम
सपाक्स (सामान्य, पिछड़ा एवं अल्पसंख्यक वर्ग अधिकारी-कर्मचारी संस्था) अब इस नियम को कोर्ट में चुनौती देने जा रही है। संस्था के अध्यक्ष डॉ. केपीएस तोमर ने स्पष्ट किया कि यह नियम अनारक्षित वर्ग के अधिकारों का खुला उल्लंघन है। वे विधिक सलाह लेकर जल्द ही हाईकोर्ट में याचिका दायर करेंगे।
आरक्षण बनाम न्याय
मंत्रालय में आरक्षण का प्रतिशत भले 36% हो, लेकिन अधिकारियों का आरोप है कि आरक्षित वर्ग को अनारक्षित पदों पर भी तरजीह दी जा रही है। उदाहरण के तौर पर, अंडर सेक्रेटरी के 65 पदों में से 58 पर, उप सचिव के 14 में से सभी और अपर सचिव के तीनों पदों पर आरक्षित वर्ग के अधिकारी कार्यरत हैं। यह आंकड़े अनारक्षित वर्ग के कर्मचारियों के आक्रोश का कारण बन रहे हैं।
मंत्रालय में विरोध की आग
मंत्रालय में अनारक्षित वर्ग के अधिकारी और कर्मचारी विरोध स्वरूप काली टोपी पहनकर काम कर रहे हैं। मंगलवार को एक बड़ी मीटिंग में रणनीति बनाई गई कि अब केवल ज्ञापन नहीं बल्कि कोर्ट और आंदोलन दोनों रास्ते अपनाए जाएंगे।
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प्रशासन का पक्ष और ट्रेनिंग की तैयारी
मुख्य सचिव अनुराग जैन 26 जून को सभी विभागीय अधिकारियों को पदोन्नति नियमों को लेकर प्रशिक्षण देने वाले हैं। सरकार का दावा है कि नियम पारदर्शी और प्रक्रियात्मक हैं, लेकिन कर्मचारियों का कहना है कि अगर पुराने अन्याय को फिर दोहराया जाएगा, तो इसका विरोध और तेज़ होगा।
इस मामले को लेकर जनता और कर्मचारियों में इस विषय को लेकर असंतोष है। सोशल मीडिया और व्हाट्सएप ग्रुप्स में यह चर्चा का प्रमुख मुद्दा बना हुआ है कि क्या वास्तव में आरक्षण अपनी सीमाएं पार कर चुका है? कई लोगों का कहना है कि सरकार को सामाजिक संतुलन और मेरिट दोनों का ध्यान रखना चाहिए। वहीं कुछ लोग मानते हैं कि वर्षों से पिछड़े वर्ग को जो सुविधाएं मिली हैं, वे जारी रहनी चाहिए लेकिन दूसरे वर्गों के अधिकारों की कीमत पर नहीं।
आपको क्या लगता है? क्या नए पदोन्नति नियम वाकई में निष्पक्ष हैं या फिर एक वर्ग को फिर से नुकसान झेलना पड़ेगा?नीचे कमेंट करें और अपनी राय ज़रूर साझा करें। और इस तरह की मध्य प्रदेश से जुडी हर एक खबर के लिए जुड़े रहें अपना कल के साथ।
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