जल गंगा संवर्धन अभियान: जल संचय करने वाले जिलों में खंडवा देश भर में नंबर, मध्यप्रदेश चौथे स्थान पर

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जिस ज़मीन को कभी प्यासा कहा जाता था, उसी खंडवा ने अब जल संरक्षण की दौड़ में पूरे देश को पीछे छोड़ दिया है।
केंद्र सरकार की जल गंगा संवर्धन रिपोर्ट में खंडवा जिला देश में नंबर 1 बन गया है। और मध्यप्रदेश भी टॉप-5 में शामिल हो गया है। पर ये सिर्फ सरकारी आंकड़े नहीं हैं, ये मेहनत, भागीदारी और दूरदर्शिता की असली मिसाल है।
अब सवाल ये है, क्या ये मॉडल पूरे देश में दोहराया जा सकता है?

खंडवा देश भर में नंबर

जल गंगा संवर्धन अभियान, जो कि 30 मार्च से 30 जून 2025 तक पूरे देश में चलाया गया, उसमें खंडवा ने 19,808 जल संरक्षण कार्यों को समय पर पूरा कर देशभर में पहला स्थान हासिल किया। ये काम केवल कागज़ी फाइलों में नहीं, बल्कि ज़मीन पर तालाबों की खुदाई, नालों की सफाई, रिचार्ज वेल्स और सामुदायिक जल स्रोतों के पुनर्जीवन के रूप में हुआ।
जब दूसरे ज़िले लक्ष्य पूरे करने में जूझ रहे थे, खंडवा पहले ही अपना होमवर्क पूरा कर चुका था।

राज्य रैंकिंग में भी मध्य प्रदेश टॉप 4 में शामिल

तेलंगाना, छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र जैसे तेज़ तर्रार राज्यों के बीच मध्य प्रदेश ने चौथा स्थान पाकर साबित कर दिया कि गंभीर काम की गूंज हमेशा सुनी जाती है। राज्य ने 1.6 लाख से ज्यादा जल परियोजनाएं शुरू कीं, जिनमें से 99% से ज़्यादा पूर्ण हो गईं। इस रैंकिंग में ज़मीनी क्रियान्वयन, काम की गुणवत्ता और समयबद्धता तीनों को आधार बनाया गया और MP ने हर पैमाने पर खुद को साबित किया।

तालाब नहीं, ये उम्मीदों के जलाशय हैं

खंडवा का हर जलस्रोत सिर्फ मिट्टी और पानी का खेल नहीं है — ये गांव के हर परिवार की जिंदगी से जुड़ा है।
जहां पहले बरसात का पानी बहकर चला जाता था, वहां अब स्थायी जल संरचनाएं बन चुकी हैं।
गांव के बुज़ुर्ग बताते हैं कि ऐसी योजना उन्होंने दशकों में पहली बार देखी — जहां पंचायत, मज़दूर, अधिकारी और आम लोग एक साथ जुटे हों।

देखें केंद्र की रिपोर्ट क्या कहती है

जल शक्ति मंत्रालय द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, देशभर में लाखों जल कार्यों में से खंडवा के प्रदर्शन को ‘आदर्श जिला’ के रूप में चिन्हित किया गया है। मंत्रालय ने यह भी सुझाव दिया है कि दूसरे जिलों को खंडवा से सीख लेनी चाहिए और उनकी कार्यप्रणाली को अपनाना चाहिए। रिपोर्ट में यह भी दर्ज है कि इस जिले में मनरेगा फंड का स्मार्ट उपयोग हुआ, जिससे न केवल जल बचा, बल्कि रोज़गार भी मिला।

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गांव के किसान कहते हैं कि अब उन्हें खरीफ और रबी दोनों सीज़न में चिंता नहीं रहती क्योंकि ज़मीन में नमी बची रहती है। महिलाओं का कहना है कि पहले पानी के लिए कोसों चलना पड़ता था, अब गांव के भीतर ही उपलब्ध है।

कई बार सरकारी योजनाएं केवल आंकड़ों में जीती हैं, मगर खंडवा की कहानी बताती है कि जब नीति और नीयत एक साथ हों, तो बदलाव असंभव नहीं रहता। मुझे लगता है, खंडवा का ये मॉडल देशभर के उन जिलों के लिए उदाहरण है, जो सालों से सूखे और जल संकट से जूझ रहे हैं। जरूरत सिर्फ इस सोच को अपनाने और राजनीतिक इच्छाशक्ति की है। ये सिर्फ पानी बचाने की बात नहीं, आने वाली पीढ़ियों को बचाने की बात है।

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खंडवा ने बता दिया कि बदलाव सिर्फ़ दिल्ली या भोपाल से नहीं, गांव की मिट्टी से शुरू होता है।
अगर बाकी ज़िले और राज्य भी ऐसे ही जुट जाएं, तो भारत जल संकट से जल समृद्धि की तरफ तेज़ी से बढ़ सकता है।
ऐसी ही खबरों के लिए जुड़े रहें, और अपनी राय कमेंट में ज़रूर बताएं।

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