मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट जिलों में बसा कान्हा नेशनल पार्क सिर्फ एक टाइगर रिज़र्व नहीं, बल्कि भारत की वन्यजीव संरक्षण की सबसे सफल कहानी है। यह वही जंगल है, जहां की हरियाली, शांत वातावरण और वन्यजीवों की उपस्थिति, इंसान और प्रकृति के संतुलन का जीता-जागता उदाहरण है।
मंडला जिले के इस कान्हा नेशनल पार्क में हर साल लाखों पर्यटक इस जंगल की एक झलक देखने के साथ यहाँ उन्हें बाघ, बारहसिंगा, और मोगली की कल्पना को असलियत में देखने के लिए मोहित कर लेता है। एक बार कान्हा के जंगल में जाते है हम यहाँ के वातावरण और खूबसूरत नज़रों के बीच खोने लगते है। यहाँ के हिरन और बारहसिंघा हर किसी का मन मोहित कर लेते है।
मंडला और बालाघाट जिलों में फैला कान्हा नेशनल पार्क
कान्हा नेशनल पार्क मध्य प्रदेश के मंडला और बालाघाट जिलों में फैला हुआ है। यह पार्क लगभग 940 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है और 1 जून 1955 को राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया था। बाद में कान्हा नेशनल पार्क को 1973 में ‘Project Tiger’ के तहत शामिल किया गया और इसे कान्हा टाइगर रिज़र्व का दर्जा मिला। यह भारत के उन पहले अभयारण्यों में शामिल है जहां बाघों की घटती संख्या को देखते हुए विशेष संरक्षण अभियान चलाया गया।
जंगल बुक की सच्ची प्रेरणा कान्हा नेशनल पार्क से
रुदयार्ड किपलिंग की कालजयी रचना The Jungle Book के पात्र मोगली, बघीरा और शेर खान की कल्पना को जिन वनों ने आकार दिया, वो यहीं के जंगल हैं। हालांकि किपलिंग खुद कान्हा नहीं आए थे, पर मंडला और आसपास के जंगलों की लोककथाएं और आदिवासी कहानियों ने उनके लेखन को गहराई दी। आज भी कान्हा में घूमते हुए आपको वो एहसास होगा, जैसे मोगली किसी झाड़ी के पीछे से झांक रहा हो।
कान्हा में मिलते है बंगाल टाइगर
कान्हा नेशनल पार्क को खास बनाता है यहां का समृद्ध जैव विविधता। यहां का सबसे बड़ा आकर्षण है बंगाल टाइगर, जो जंगल का असली राजा है। इसके अलावा, यहां पाई जाती है हर्डविक बारहसिंगा (Swamp Deer) की वह अनोखी प्रजाति जो दुनिया में सिर्फ यहीं बची है। और इसके अलावा भालू, तेंदुआ, जंगली कुत्ता, गौर (भारतीय बाइसन), चीतल, सांभर और 300 से अधिक पक्षियों की प्रजातियां भी यहां देखी जा सकती हैं।
हर सफारी में एक रोमांच होता है, जंगल की शांति के बीच अचानक एक बाघ सामने आ जाए, तो दिल की धड़कनें रुक सी जाती हैं। इसके साथ ही जंगल में सफारी के रास्ते कई बाघ सोते हुए भी नजर आते है। यहाँ के आस पास के कई इलाकों में शेर खुले घूमते भी नजर आ जाते है। अक्सर रातों में कान्हा, मंडला और बालाघाट में सफर करने वाले यात्रियों को रास्तों में बाघ दिख जाते है।
पर्यटन और स्थानीय जीवन में बदलाव
कान्हा नेशनल पार्क मंडला जिले की आर्थिक रीढ़ बन चुका है। यहां हर साल हज़ारों देशी-विदेशी पर्यटक जंगल सफारी के लिए आते हैं। इससे आसपास के गांवों में होटल, रिसॉर्ट, होमस्टे, जीप चालक, गाइड और हस्तशिल्प उद्योगों को रोज़गार मिलता है। ये इलाका आज एक बेहतरीन eco-tourism model बन चुका है, जहां प्रकृति और विकास साथ चलते हैं।
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संरक्षण की असली सफलता की कहानी
कान्हा की सबसे बड़ी उपलब्धि है बारहसिंगा की वापसी है। एक समय था जब यह प्रजाति लगभग विलुप्ति के कगार पर थी, लेकिन वन विभाग, स्थानीय समुदाय और वैज्ञानिक प्रयासों से आज उनकी संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है। इसी तरह, बाघों की गिनती भी लगातार बढ़ रही है। यहां कैमरा ट्रैप, GPS ट्रैकिंग, पेट्रोलिंग टीम, और कठोर कानून बाघों को सुरक्षित रखते हैं।
आज जब देश के कई हिस्सों में जंगल कट रहे हैं, बाघों की संख्या कम हो रही है, ऐसे में कान्हा जैसे जंगलों का रहना बहुत जरुरी है। यह जंगल न सिर्फ पर्यावरण संतुलन बनाए रखता है, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को सिखाता है कि प्रकृति से प्रेम और सह-अस्तित्व ही जीवन है। अगर आपने अब तक कान्हा नहीं देखा है, तो अगली छुट्टियों में इस जंगल का प्लान ज़रूर बनाइए।
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अधिक जानकारी के लिए के लिए और सफारी बुकिंग, होटल्स और यात्रा की पूरी जानकारीआप मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट https://www.mptourism.com पर जानकारी ले सकते हैं।