MP News: खंडवा में जल गंगा संवर्धन अभियान के समापन समारोह में मुख्यमंत्री मोहन यादव ने जो बातें कहीं, वो सिर्फ एक रिपोर्ट नहीं – एक बदलाव की तस्वीर है। उन्होंने दावा किया कि मालवा-निमाड़ की धरती, जो कभी प्यास से तड़पती थी, आज जल संरक्षण की मिसाल बन गई है। 40 लाख लोगों की भागीदारी और हजारों जल स्रोतों के पुनर्जीवन ने मध्य प्रदेश की सूरत ही बदल दी है।
90 दिनों का जल गंगा अभियान से बदलाव
खंडवा में आयोजित कार्यक्रम सिर्फ एक समापन समारोह नहीं था, ये एक जल क्रांति का उत्सव था। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने बताया कि 90 दिन चले इस अभियान में 40 लाख से अधिक लोगों ने हिस्सा लिया और 5000 से ज्यादा जल स्रोतों को नया जीवन मिला। खेत-खेत में तालाब बने, कुएँ रिचार्ज हुए, अमृत सरोवरों की संख्या बढ़ी और शहरी इलाकों में जल स्रोतों का कायाकल्प हुआ।
मुख्यमंत्री मोहन यादव ने इसे “जन-भागीदारी से विकसित विकास मॉडल” बताया और इसे भविष्य के लिए एक रोडमैप की तरह पेश किया। 83 हजार खेत तालाब, 1 लाख से ज्यादा कुओं का रिचार्ज और हजारों संरचनाओं ने पानी को जमीन में लौटाया, वो भी ऐसे समय में जब देश जल संकट की चिंता कर रहा है।
कांग्रेस पर हमला, और भविष्य की नई योजनाएं
सीएम मोहन यादव जी ने भाषण में कांग्रेस पर जमकर हमला बोला। उन्होंने कहा कि मालवा-निमाड़ की जल समस्या के लिए पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकारें जिम्मेदार हैं। “जब मालवा की सीमा खत्म होती थी और निमाड़ शुरू होता था, वहां प्यास की शुरुआत हो जाती थी,” उन्होंने कहा।
आगे उन्होंने ये भी बताया कि अब इस इलाके में तापमान में चार डिग्री की गिरावट देखी गई है। उज्जैन की तर्ज पर ओंकारेश्वर में “महालोक” परियोजना शुरू की जाएगी और इंदौर-ओंकारेश्वर के बीच रेल संपर्क की भी सौगात दी जाएगी।
टेक्नोलॉजी और इनोवेशन से भी जुड़ा जल मिशन
जल मिशन योजना सिर्फ निर्माण की नहीं थी, निगरानी और प्रबंधन की भी थी। GIS आधारित SIPRI सॉफ्टवेयर और AI तकनीक से जल स्रोतों की पहचान और मॉनिटरिंग की गई। नर्मदा परिक्रमा पथ समेत तीर्थ मार्गों का डिजिटलीकरण कर सुविधाएं बढ़ाई जा रही हैं।
राज्य सरकार ने बताया कि 57 प्रमुख नदियों में मिलने वाले 194 नालों का शोधन योजना में है, ताकि नदियां अविरल और निर्मल बनी रहें। जैव विविधता की दृष्टि से घड़ियाल और कछुओं को जल स्रोतों में पुनः जलावतरण किया गया। साथ ही, 6 करोड़ पौधों की नर्सरी तैयार की गई जो जलवायु संतुलन में योगदान देगी।
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किसानों को लाभ अब साल में तीन फसलें
जल संरक्षण से सिर्फ पानी नहीं बचा, किसानों की ज़िंदगी भी बदली। मुख्यमंत्री ने बताया कि 91 वॉटरशेड परियोजनाओं से 5.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र सिंचित होगा। 9000 से अधिक जल संरचनाओं ने यह संभव किया कि किसान अब साल में तीन फसलें ले पा रहे हैं। 2003 में जहाँ सिर्फ 7 लाख हेक्टेयर ज़मीन सिंचित थी, अब यह आंकड़ा 55 लाख हेक्टेयर तक पहुंच चुका है।
आगामी 5 वर्षों में यह लक्ष्य 100 लाख हेक्टेयर का है। साथ ही, बुंदेलखंड की प्यास बुझाने के लिए केन-बेतवा योजना पर भी तेज़ी से काम हो रहा है, जिसकी कुल लागत 1 लाख करोड़ है और सिर्फ 5% राशि राज्य सरकार को देनी है – बाकी केंद्र सरकार वहन कर रही है।
मैं उदय पटेल एक लेखक और अपना कल न्यूज़ का संपादक होने के नाते मुझे लगता है क़ी यह बदलाव सिर्फ एक सरकार की योजना नहीं है, ये आम जनता की आस्था, सहभागिता और मेहनत की कहानी है। जल संरक्षण को लेकर इस तरह का जन आंदोलन बहुत दुर्लभ होता है। 40 लाख लोगों की भागीदारी और टेक्नोलॉजी के उपयोग ने ये साबित कर दिया है कि अगर नीति और नीयत साथ हों, तो किसी भी प्रदेश की किस्मत बदली जा सकती है।
हालांकि यह भी ज़रूरी है कि इस अभियान के परिणामों की लंबी अवधि तक निगरानी हो और राजनीतिक बयानबाज़ी से ऊपर उठकर पारदर्शिता और वैज्ञानिकता के साथ इसे आगे बढ़ाया जाए।
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