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Chhat Puja2021क्या है छठ पूजा का ऐतिहासिक मान्यता जानिए

                                                                             chhat puja 2021chhat-puja-2021
छठ पूजा को क्यों एक महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है
chhat puja 2021
कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष में मनाए जाने वाला छठ पूजा का यह त्यौहार दरअसल में कई मान्यताओं से परिपूर्ण माना जाता है ऐसा कहा जाता है की छठ पूजा में जो वर्ती सच्चे मन से कबूला करते हैं उनकी मनोकामना जरूर पूरा होती है। इस वर्ष छठ पूजा, 8 नवंबर 2021 को नहाए खाए से शुरू होगा, 9 नवंबर 2021 को करना होगा 10 नवंबर 2021 को शाम का अरध है तथा 11 नवंबर 2021 को सवेरे में छठ पूजा का समापन होगा।
छठ पूजा chhat puja 2021
ऐतिहासिक तथ्य के अनुसार छठ पूजा की आरंभिक तिथि सदियों पुरानी है हजारों दशकों से चलती आ रही है छठ पूजा की परंपरा आज भी उतना ही लोकप्रिय है जितना कि दशकों से छठ पूजा की लोकप्रियता रहा है। छठ पूजा का यह त्यौहार खास करके यूपी, बिहार एवम झारखंड इन राज्यों में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। छठ पूजा का यह त्यौहार बिहार और झारखंड का राजकीय त्योहारों में से एक है।
छठ का त्यौहार क्यों मनाया जाता है।
छठ पूजा दरअसल में सूर्य देवता दिनकर दीनानाथ को समर्पित हैं। छठ पूजा में उगते सूर्य और डूबते सूर्य की आराधना की जाती है ऐसा माना जाता है कि उगते सूर्य डूबते सूर्य की आराधना करने से सूर्य देवता सहाय होते हैं और उन्हें कई कष्टों से मुक्त करते हैं। छठ का व्रत रखने वाले वर्ती के जीवन में सुख और संपन्नता का आगमन होता है सूर्य की भांति उनका जीवन आत्मशक्ति, विश्वास रूपी होती है। सूर्य देवता दिनकर दीनानाथ के आराध्य से उन्हें हर विपदाओं से लड़ने में शक्ति मिलती है।
छठ पूजा का मान्यताएं हैं
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छठ पूजा का त्योहार एक बहुत ही नियंबध्य तोहार हैं। यह त्योहार दिवाली के छठे दिन मनाया जाता है नहाए खाए से शुरू होकर उगते सूर्य की आराधना पर खत्म होती है 36 घंटा तक चलने वाली यह त्यौहार कई मान्यताओं से परिपूर्ण है।
नहाए खाए के दिन से ही छठ पूजा प्रारंभ हो जाती है घर की साफ सफाई होने के बाद इस दिन घर में वर्ती के लिए कद्दू की सब्जी बनाकर खाने की परंपरा है दरअसल ऐसा करने से छठ मैया का त्यौहार सफल और परिपूर्ण माना जाता है अगले ही दिन खरना होती है।
अगले दिन वर्ती पूरे दिन उपासना करती है शाम को घर की निपा पोछा करने के बाद मिट्टी के चूल्हे पर चावल की पूरी और गुड़ वाली खीर बनाकर पूजन करती है और छठी माई के नाम से भोग लगाती है। भूख लगाने के पश्चात एकांत में वह प्रसाद ग्रहण करती है। इसके पश्चात छठ पूजा का अंतिम आराध के बाद ही भोजन ग्रहण करती है।
खरना के सुबह वर्ती घर में छठ मैया की आराधना के लिए पूजा की सभी सामग्री एकत्रित करती है इसी दिन ठकुआ पूरी सहित सभी सामग्री एकत्रित करती है। बॉस या स्टील की सुपा और बांस की टोकरी गन्ने की झार, सेब, संतरा, नाशपाती, केला, नारियल, हल्दी का पैर, कलस, कलश में आम का पत्ता, सिंदूर और पिठार, धूप अगरबत्ती आदि
छठी मैया की आराधना के लिए किसी नदी या तालाब की घाट को सुनिश्चित किया जाता है जिन्हें बहुत ही अच्छी तरीके से सजाया जाता है। शाम होते ही घाट के लिए प्रस्थान किया जाता है। छठ की घाट को दुल्हन की तरह सजाया जाता है। जहां कई प्रकार के कार्यक्रम भी आयोजित करते हैं। घाट पर वर्ती छठ मैया के गीत का प्रयान करती है। दिन ढलने के पश्चात, सूर्य देवता दिनकर दीनानाथ का आराधना की जाती है।अरध देने के पश्चात
वर्ती अपनी पूजा सामग्री के साथ वापस घर लौट जाती है
तथा सूरज के निकलने के कई घंटों पहले ही घाट पर पूजा सामग्री के साथ पहुंच जाती है।
और फिर वर्ती सूरज निकलते ही उगते सूर्य को जल चढ़ा कर छठ मैया को अरध देते हैं। पूजा समाप्ति के पश्चात प्रसाद को लोगों में वितरित करती है इस प्रकार छठ पूजा का समापन हो जाती है
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