MP News: स्व-सहायता समूहों ने किया कमाल: चाचा खेड़ी टोल प्लाजा अब महिलाओं के हाथों में

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शाजापुर-नलखेड़ा मार्ग पर स्थित चाचा खेड़ी टोल प्लाजा — जहाँ पहले एक सामान्य संचालन चलता था — आज ज्योति महिला आजीविका संकुल स्तर के एसएचजी संगठन के हाथों में है। दो साल से ये महिलाएं इस टोल प्लाजा का सफल प्रबंधन कर रही हैं। अब उस अनुबंध को एक साल और बढ़ाया गया है — लेकिन इस बदलाव से सिर्फ टोल प्लाजा नहीं, महिलाओं की ज़िंदगी भी बदली है।

चाचा खेड़ी टोल प्लाजा पर महिलाओं की जबरदस्त भूमिका

आगर मालवा जिले के शाजापुर-नलखेड़ा मार्ग पर स्थित चाचा खेड़ी टोल प्लाजा का संचालन अब महिलाओं द्वारा संचालित एसएचजी (स्व सहायता समूह) के माध्यम से किया जा रहा है। मध्य प्रदेश जन संपर्क विभाग ने आधिकारिक ट्वीट भी किया और इनके ट्विटर पोस्ट के अनुसार, “बेहतर संचालन को देखते हुए संगठन के अनुबंध को 1 साल और बढ़ा दिया गया है।”
इसका मतलब यह है कि न सिर्फ वे शुरूआती चुनौतियों से सफलतापूर्वक उभरी हैं, बल्कि उनके प्रयासों को मान्यता मिल रही है।

इस पहल की पृष्ठभूमि: एक नायाब प्रयोग

मध्य प्रदेश सरकार ने राज्य की सड़क विकास निगम (MPRDC) के तहत कुछ टोल प्लाजाओं की संचालन जिम्मेदारी महिलाओं के स्व सहायता समूहों को सौंपने का निर्णय लिया था।
विशेष रूप से चाचा खेड़ी टोल प्लाजा इस प्रयोग का हिस्सा है, जहाँ महिलाओं ने न सिर्फ टोल वसूली, रखरखाव, रिकॉर्डिंग, और ग्राहक सेवा जैसे तमाम काम संभाले हैं।
समझौते (MoU) के तहत, संचालन की आमदनी का 30% हिस्सा इन महिलाओं के समूह को जाता है, और बाकी MPRDC को।

टोल प्लाजा संचालन में चुनौतियाँ और सफलताएँ

शुरुआत में तकनीकी तालमेल, प्रशिक्षण, रिकॉर्ड मेन्टेन करना और ग्राहक विश्वास जीतना कुछ चुनौतियाँ थीं। लेकिन महिलाएं धीरे-धीरे उनमें पारंगत हो गईं।
उनके नेतृत्व ने समय पर वसूली सुनिश्चित की, टोल प्लाजा की साफ-सफाई और सुविधा बनाए रखी, और नागरिकों को भरोसा दिया कि यह टोल संचालन अब भी सुचारू है।

जब इन महिलाओं ने यह दिखाया कि वे न केवल नाराज़गी नहीं बल्कि प्रशंसा पाने लायक हैं, तब सरकार ने उनका अनुबंध एक वर्ष और बढ़ाने का निर्णय लिया है — जो उनकी मेहनत और विश्वसनीयता का प्रमाण है।

फायदे: सिर्फ आर्थिक नहीं, सामाजिक रूप से भी बड़ा बदलाव

  1. आर्थिक सशक्तिकरण: अब टोल वसूली का हिस्सा सीधे महिलाओं के पास जाता है, जिससे उनकी आमदनी बढ़ती है।
  2. सम्मान और आत्मविश्वास: ऐसे क्षेत्रों में काम करने वाली महिलाओं की सामाजिक छवि बदल रही है — “महिला भी कर सकती है” की कहानी मजबूत हो रही है।
  3. स्थिर व पारदर्शी संचालन: महिलाओं ने टोल प्लाजा संचालन में स्थिरता, जवाबदेही और पारदर्शिता लाई है।
  4. अन्य जिलों के लिए मॉडल: अगर यह मॉडल सफल होता है, तो अन्य टोल प्लाजाओं में भी महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया जा सकता है।

यह कदम न सिर्फ पॉलिसी की जीत है, बल्कि सांस्कृतिक बदलाव की शुरुआत है। अक्सर हम सुनते हैं कि महिलाओं को ‘सुरक्षित’ कार्यों तक सीमित रखा जाए — लेकिन यहां महिलाओं ने दिखाया है कि चुनौतियाँ स्वीकार कर, जिम्मेदारी निभाना उन्हें भी उतना ही सहज है जितना किसी और के लिए।

हां, आलोचना होगी — “टेक्निकल काम महिलाएं कैसे करेंगी?”, “टोल वसूली में पारदर्शिता कैसे होगी?” आदि सवाल होंगे। लेकिन यही सवालों के जवाब हैं जो इस मॉडल को और मजबूत बनाएँगे।

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मैं उदय पटेल एक लेखक होने के नाते मेरी राय है कि यह पहल केवल टोल प्लाजा संचालन के लिए नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण की वास्तविक मिसाल है। इसे सुगमता से विफल नहीं होने देना चाहिए — बल्कि इसे और क्षेत्रों में विस्तार देना चाहिए।

यह न केवल एक टोल प्लाजा की सफलता की कहानी है, बल्कि एक समाज की सोच बदलने की शुरुआत है।
आपका क्या विचार है — क्या और टोल प्लाजाओं में ऐसी महिलाओं की भागीदारी बढ़नी चाहिए? नीचे कमेंट में बताइए और ऐसी ही प्रेरणादायक खबरों के लिए जुड़े रहें।

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